Very recently, I heard some Sufi songs on YouTube (posted by DervishBeats channel), and I was glued to its music and poetry. Interestingly, the words of the poetry resonated so much and were so sublime, that I had to find the name of the poet, and he was an Indian poet, Jigar Moradabadi. Interestingly, I had listened few shayaris or kalams by that poet here and there (including the very famous lines of "yeh ishq nahin aasaan, aag ka dariya hai aur doob ke jana hai" familiar to many as its often common in some Bollywood movies).
I had known of few beautiful lines (see below) and found out they were actually written by Jigar Moradabadi..
"दिल
गया रौनक़-ए-हयात गई
ग़म
गया सारी कायनात गई"- Jigar Moradabadi
1.
Meri Zindagi To Firaaq Hai | In Separation, The Soul Finds Its Beloved | Devotional Sufi Kalam
"मिरी ज़िंदगी तो फ़िराक़ है वो अज़ल से दिल में मकीं सही
वो निगाह-ए-शौक़ से दूर हैं रग-ए-जाँ से लाख क़रीं सही
हमें जान देनी है एक दिन वो किसी तरह वो कहीं सही
हमें आप खींचे दार पर जो नहीं कोई तो हमीं सही
ग़म-ए-ज़िंदगी से फ़रार क्या ये सुकून क्यूँ ये क़रार क्या
ग़म-ए-ज़िंदगी भी है ज़िंदगी जो नहीं ख़ुशी तो नहीं सही
सर-ए-तूर हो सर-ए-हश्र हो हमें इंतिज़ार क़ुबूल है
वो कभी मिलें वो कहीं मिलें वो कभी सही वो कहीं सही
न हो उन पे जो मिरा बस नहीं कि ये 'आशिक़ी है हवस नहीं
मैं उन्हीं का था मैं उन्हीं का हूँ वो मिरे नहीं तो नहीं सही
मुझे बैठने की जगह मिले मिरी आरज़ू का भरम रहे
तिरी अंजुमन में अगर नहीं तिरी अंजुमन के क़रीं सही
तिरे वास्ते है ये वक़्फ़-ए-सर रहे ता-अबद तिरा संग-ए-दर
कोई सज्दा-रेज़ न हो सके तो न हो मिरी ही जबीं सही
मिरी ज़िंदगी का नक़ीब है नहीं दूर मुझ से क़रीब है
मुझे उस का ग़म तो नसीब है वो अगर नहीं तो नहीं सही
जो हो फ़ैसला वो सुनाइए उसे हश्र पर न उठाइए
जो करेंगे आप सितम वहाँ वो अभी सही वो यहीं सही
उसे देखने की जो लौ लगी तो 'नसीर' देख ही लेंगे हम
वो हज़ार आँख से दूर हो वो हज़ार पर्दा-नशीं सही"
-पीर नसीरुद्दीन नसीर
“mohabbat ġham hai to ārām kyā hai
hameñ ārām se phir
kaam kyā
hai
samajh meñ
dil kī
bāteñ
kuchh na aa.eñ
na jaane
'ishq kā
paiġhām kyā hai
mohabbat hī mohabbat
hai zamāna
mohabbat ḳhaas hai to
'aam kyā
hai
nigāhoñ meñ hai
mastī
kī
haqīqat
tirī āñkhoñ ke
aage jaam kyā
hai
safar meñ
zindagī
kī
manzileñ haiñ
nahīñ to subah
kyā
hai shaam kyā
hai
har
achchhe naam se un ko pukārā
ḳhudā mā'lūm un kā naam kyā hai
'zaheen' un ke
chale jaane se pahle
na jaane
'ishq kā
anjām
kyā
hai”
-ZAHEEN
SHAH TAJI
"आँखों में बस के दिल में समा कर चले गए
ख़्वाबीदा ज़िंदगी थी जगा कर चले गए
हुस्न-ए-अज़ल की शान दिखा कर चले गए
इक वाक़िआ' सा याद दिला कर चले गए
चेहरे तक आस्तीन वो ला कर चले गए
क्या राज़ था कि जिस को छुपा कर चले गए
रग रग में इस तरह वो समा कर चले गए
जैसे मुझी को मुझ से चुरा कर चले गए
मेरी हयात-ए-इश्क़ को दे कर जुनून-ए-शौक़
मुझ को तमाम होश बना कर चले गए
समझा के पस्तियाँ मिरे औज-ए-कमाल की
अपनी बुलंदियाँ वो दिखा कर चले गए
अपने फ़रोग़-ए-हुस्न की दिखला के वुसअ'तें
मेरे हुदूद-ए-शौक़ बढ़ा कर चले गए
हर शय को मेरी ख़ातिर-ए-नाशाद के लिए
आईना-ए-जमाल बना कर चले गए
आए थे दिल की प्यास बुझाने के वास्ते
इक आग सी वो और लगा कर चले गए
आए थे चश्म-ए-शौक़ की हसरत निकालने
सर-ता-क़दम निगाह बना कर चले गए
अब कारोबार-ए-इश्क़ से फ़ुर्सत मुझे कहाँ
कौनैन का वो दर्द बढ़ा कर चले गए
शुक्र-ए-करम के साथ ये शिकवा भी हो क़ुबूल
अपना सा क्यूँ न मुझ को बना कर चले गए
लब थरथरा के रह गए लेकिन वो ऐ 'जिगर'
जाते हुए निगाह मिला कर चले गए"
-जिगर मुरादाबादी
4.
Ek Lafz-e-Mohabbat | The Burning of Ishq | A Soulful Devotional Sufi Kalam
"इक लफ़्ज़-ए-मोहब्बत का
अदना ये फ़साना है
सिमटे तो दिल-ए-आशिक़ फैले तो ज़माना
है
ये किस का तसव्वुर
है ये किस का
फ़साना है
जो अश्क है आँखों
में तस्बीह का दाना है
दिल संग-ए-मलामत
का हर-चंद निशाना
है
दिल फिर भी मिरा
दिल है दिल ही
तो ज़माना है
हम इश्क़ के मारों का
इतना ही फ़साना है
रोने को नहीं कोई
हँसने को ज़माना है
वो और वफ़ा-दुश्मन
मानेंगे न माना है
सब दिल की शरारत
है आँखों का बहाना है
शाएर हूँ मैं शाएर
हूँ मेरा ही ज़माना
है
फ़ितरत मिरा आईना क़ुदरत
मेरा शाना है
जो उन पे गुज़रती
है किस ने उसे
जाना है
अपनी ही मुसीबत है
अपना ही फ़साना है
क्या हुस्न ने समझा है
क्या इश्क़ ने जाना है
हम ख़ाक-नशीनों की
ठोकर में ज़माना है
आग़ाज़-ए-मोहब्बत है
आना है न जाना
है
अश्कों की हुकूमत है
आहों का ज़माना है
आँखों में नमी सी
है चुप चुप से
वो बैठे हैं
नाज़ुक सी निगाहों में
नाज़ुक सा फ़साना है
हम दर्द-ब-दिल
नालाँ वो दस्त-ब-दिल हैराँ
ऐ इश्क़ तो क्या ज़ालिम
तेरा ही ज़माना है
या वो थे ख़फ़ा
हम से या हम
हैं ख़फ़ा उन से
कल उन का ज़माना
था आज अपना ज़माना
है
ऐ इश्क़-ए-जुनूँ-पेशा
हाँ इश्क़-ए-जुनूँ-पेशा
आज एक सितमगर को
हँस हँस के रुलाना
है
थोड़ी सी इजाज़त भी
ऐ बज़्म-गह-ए-हस्ती
आ निकले हैं दम-भर
को रोना है रुलाना
है
ये इश्क़ नहीं आसाँ इतना
ही समझ लीजे
इक आग का दरिया
है और डूब के
जाना है
ख़ुद हुस्न-ओ-शबाब उन
का क्या कम है
रक़ीब अपना
जब देखिए अब वो हैं
आईना है शाना है
तस्वीर के दो रुख़
हैं जाँ और ग़म-ए-जानाँ
इक नक़्श छुपाना है इक नक़्श
दिखाना है
ये हुस्न-ओ-जमाल उन
का ये इश्क़-ओ-शबाब अपना
जीने की तमन्ना है
मरने का ज़माना है
मुझ को इसी धुन
में है हर लहज़ा
बसर करना
अब आए वो अब
आए लाज़िम उन्हें आना है
ख़ुद्दारी-ओ-महरूमी महरूमी-ओ-ख़ुद्दारी
अब दिल को ख़ुदा
रक्खे अब दिल का
ज़माना है
अश्कों के तबस्सुम में
आहों के तरन्नुम में
मासूम मोहब्बत का मासूम फ़साना
है
आँसू तो बहुत से
हैं आँखों में 'जिगर' लेकिन
बंध जाए सो मोती
है रह जाए सो
दाना है"
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